कभी धूप में, कभी छांव में
चर्चा तेरे हुस्न का हर गांव में
तू दरिया किनारे ढूँढे राही प्यार का
एक सौ सात तेरे आशिक़ बैठे इस नाव में
कभी मेले में, बाज़ार में, कभी राहों में
बिछी फूलों कि चादर तेरी चाहों में
नजर तेरे इश्क कि उस नचीज़ पे होगी
डालेगा जो झांझर तेरे पाँवों में
कभी बारिश में, जाड़ों में, कभी हवाओं में
फैली बात हमारी हर तरफ़ फिज़ाओ में
पाजेब की आवाज़ ये राज़ रख ना सकी
सुकून “आदि” को आता है बस तेरी बाहों में
– आदित्य “आदी” सिंग्ला (04 Mar’14)